Thursday, March 13, 2008
राज़ -ऐ -दिल
राज़ -ऐ दिल ज़ाहिर हुआ तो कितने अफसाने बने
तब मेरी दीवानगी के कितने दीवाने बने
उमर भर की बंदगी का क्या सिला हमको मिला
हर इक अपनों बेगाने की नज़रों के निशाने बने
कौन कहता है बुरी आदत है मेरी मैकशी
पहले तू जैसो ने ठुकराया तो मैखाने बने
जिनकी अक्ल को मानते थे शहर भर के अकलमंद
इक तेरी उल्फत मेंफिरते है वो दीवाने बने
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