Thursday, March 13, 2008

तज़ुर्बात



वो ही लूटेगा तुम्हे होगा जिसपे तुमको फख्र
ये मेरा तलख तज़ुरबा है जो हुआ अक्सर

हमने तन्हाई में सजा ली थी अपनी महफिल
उनको रंगीनी-ऐ-महफिल भी न रास आई मगर

या खुदा शुक्र है इक दिन भी तो है रात के बाद
उनको रंगीनी -ऐ महफिल भी न रास आई मगर

तब से आता है मजा कामिल को दर्द सहने में
जब से हमदर्द बन गया है मेरा दर्द -ऐ -जिगर

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